लखनऊ। सरकार प्रदेश को जैविक और हर्बल खेती का हब बनाने जा रही है। सरकार की मंशा अगले दो वर्षों में हर्बल, औषधीय एवं सगंध पौधों खेती का रकबा बढ़ाकर 10 लाख हेक्टेयर करने की है। इसकी खेती को प्रोत्साहन देने के लिए प्रदेश सरकार केंद्र की मदद से इस पर 400 करोड़ रुपये खर्च करेगी। अनुमान है कि इससे किसानों की आय में करीब 500 करोड़ रुपये का इजाफा होगा।
फिलहाल राष्ट्रीय पादप बोर्ड (एनएमपीबी) प्रदेश में 2.25 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में औषधीय पौधों की खेती में सहयोग कर रहा है। एनएमपीबी की मदद से गंगा किनारे में 800 हेक्टेयर का हर्बल गलियारा विकसित करने की भी योजना है।
इन औषधीय पौधों की खेती को मिलेगा बढ़ावा
सीरीस, घृतकुमारी, नीम, सतावरी, पुनर्नवा, चिरायता, जराकुस, सहजन, जटामानशी, तुलसी, रतनजोत गिनसैन्ग, गिलोय, अश्वगन्धा, मूसली, अशोक, अर्जुन, कालमेघ, भूईं आंवला और ऑवला के पौधों के साथ इनके बीज उत्पादन और नर्सरी का काम होगा। किसानों को प्रशिक्षण दिया जाएगा। उनको न्यूनतम दाम पर गुणवत्ता के बीज और नर्सरी से पौधे दिए जाएंगे।
भविष्य में अलग-अलग उत्पादों के प्रसंस्करण के लिए इकाइयां लगेंगी। सरकार उत्पाद के ग्रेडिंग, पैकिंग में भी किसानों को मदद करेगी। साथ औषधीय खेती के बारे में प्रशिक्षण के दौरान ही व्यवहारिक ज्ञान और वैज्ञानिकों से सीधा संवाद कराने के लिए किसानों को सीमैप और रहमानखेड़ा का विजिट कराया जाएगा। किसानों को अपने उपज का वाजिब दाम मिले इसके लिए सरकार बड़ी-बड़ी आयुर्वेदिक कंपनियों और निर्यातकों से भी किसानों को जोड़ेगी।
आय दूनी करने में मददगार बनेगी हर्बल खेती
किसानों की आय दोगुना करना सरकार का लक्ष्य है। इसलिए सरकार लगातार कृषि विविधीकरण (डाइवर्सिफिकेशन) पर जोर दे रही। विविधीकरण अगर बाजार की मांग के अनुसार हो तो किसानों की आय में और वृद्धि होगी। कोविड के कारण आयुर्वेदिक उत्पादों की मांग और बढ़ने की संभावना को देखते हुए बतौर मॉडल लखनऊ से इस योजना की शुरुआत की गई है।